श्री पुष्पदंत चालीसा लिरिक्स | PUSHPDAND CHALISA LYRICS |

श्री पुष्पदंत चालीसा लिरिक्स
 | PUSHPDAND CHALISA LYRICS |

दुख से तप्त मरूस्थल भव में,
सघन वृक्ष सम छायाकार।
पुष्पदन्त पद-छत्र- छाव में,
हम आश्रय पावे सुखकार।
जम्बूद्विप के भारत क्षेत्र में,
काकन्दी नामक नगरी में।
राज्य करें सुग्रीव बलधारी,
जयरामा रानी थी प्यारी।
नवमी फाल्गुन कृष्ण बल्वानी,
षोडश स्वप्न देखती रानी।
सुत तीर्थंकर हर्भ में आएं,
गर्भ कल्याणक देव मनायें।
प्रतिपदा मंगसिर उजयारी,
जन्मे पुष्पदन्त हितकारी।
जन्मोत्सव की शोभा नंयारी,
स्वर्गपूरी सम नगरी प्यारी।
आयु थी दो लक्ष पूर्व की,
ऊँचाई शत एक धनुष की।
थामी जब राज्य बागडोर,
क्षेत्र वृद्धि हुई चहुँ ओर।
इच्छाएँ उनकी सीमीत,
मित्र पर्भु के हुए असीमित।
एक दिन उल्कापात देखकर,
दृष्टिपाल किया जीवन पर।
सुस्थिर कोई पदार्थ न जग में,
मिले न सुख किंचित भवमग में।
ब्रह्मलोक से सुरगन आए,
जिनवर का वैराग्य बढ़ायें।
सुमति पुत्र को देकर राज,
शिविका में प्रभु गए विराज।
पुष्पक वन में गए हितकार,
दीक्षा ली संगभूप हजार।
गए शैलपुर दो दिन बाद,
हुआ आहार वहां निराबाद।
पात्रदान से हर्षित होकर,
पंचाश्चर्य करे सुर आकर।
प्रभुवर लोट गए उपवन को,
तत्पर हुए कर्म- छेदन को।
लगी समाधि नाग वृक्ष तल,
केवलज्ञान उपाया निर्मल।
इन्द्राज्ञा से समोश्रण की,
धनपति ने आकर रचना की।
दिव्य देशना होती प्रभु की,
ज्ञान पिपासा मिटी जगत की।
अनुप्रेक्षा द्वादश समझाई,
धर्म स्वरूप विचारो भाई।
शुक्ल ध्यान की महिमा गाई,
शुक्ल ध्यान से हों शिवराई।
चारो भेद सहित धारो मन,
मोक्षमहल में पंहुचो तत्क्षण।
मोक्ष मार्ग दर्शाया प्रभु ने,
हर्षित हुए सकल जन मन में।
इन्द्र करे प्रार्थना जोड़ कर,
सुखद विहार हुआ श्री जिनवर।
गए अन्त में शिखर सम्मेद,
ध्यान में लीन हुए निरखेद।
शुक्ल ध्यान से किया कर्मक्षय,
सन्ध्या समय पाया पद आक्षय।
अश्विन अष्टमी शुकल महान,
मोक्ष कल्याणक करें सुर आन।
सुप्रभ कूट की करते पूजा,
सुविधि नाथ नाम है दूजा।
मगरमच्छ है लक्षण प्रभु का,
मंगलमय जीवन था उनका।
शिखर सम्मेद में भारी अतिशय,
प्रभु प्रतिमा है चमत्कारमय।
कलियुग में भी आते देव,
प्रतिदिन नृत्य करें स्वयमेव।
घुंघरू की झंकार गूंजती,
सब के मन को मोहित करती।
ध्वनि सुनी हमने कानो से,
पूजा की बहु उपमानो से।
हमको है ये दृड श्रद्धान,
भक्ति से पायें शिवथान।
भक्ति में शक्ति है न्यारी,
राह दिखायें करूणाधारी।
पुष्पदन्त गुणगान से,
निश्चित हो कल्याण।
हम सब अनुक्रम से मिले,
अन्तिम पद निर्वाण। 

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