श्रेयांसनाथ चालीसा लिरिक्स | SHREYANSANATHA CHALISA LYRICS |

श्रेयांसनाथ चालीसा लिरिक्स
 | SHREYANSANATHA CHALISA LYRICS |

निज मन में करके स्थापित,
पंच परम परमेष्ठि को।
लिखूं श्रेयान्सनाथ चालीसा,
मन में बहुत ही हर्षित हो।
जय श्रेयान्सनाथ श्रुतज्ञायक हो,
जय उत्तम आश्रय दायक हो।
माँ वेणु पिता विष्णु प्यारे,
तुम सिहंपुरी में अवतारे।
जय ज्येष्ठ कृष्ण षष्ठी प्यारी,
शुभ रत्नवृष्टि होती भारी।
जय गर्भकत्याणोत्सव अपार,
सब देव करें नाना प्रकार।
जय जन्म जयन्ती प्रभु महान,
फाल्गुन एकादशी कृष्ण जान।
जय जिनवर का जन्माभिषेक,
शत अष्ट कलश से करें नेक।
शुभ नाम मिला श्रेयान्सनाथ,
जय सत्यपरायण सद्यजात।
निश्रेयस मार्ग के दर्शायक,
जन्मे मति-श्रुत-अवधि धारक।
आयु चौरासी लक्ष प्रमाण,
तनतुंग धनुष अस्सी मंहान।
प्रभु वर्ण सुवर्ण समान पीत,
गए पूरब इवकीस लक्ष बीत।
हुआ ब्याह महा मंगलकारी,
सब सुख भोगों आनन्दकारी।
जब हुआ ऋतु का परिवर्तन,
वैराग्य हुआ प्रभु को उत्पन्न।
दिया राजपाट सुत 'श्रेयस्कर'
सब तजा मोह त्रिभुवन भास्कर।
सुर लाए 'विमलप्रभा' शिविका,
उद्यान 'मनोहर' नगरी का।
वहाँ जा कर केश लौंच कीने,
परिग्रह बाह्मान्तर तज दीने।
गए शुद्ध शिला तल पर विराज,
ऊपर रहा 'तुम्बुर वृक्ष' साज।
किया ध्यान वहाँ स्थिर होकर,
हुआ जान मन:पर्यय सत्वर।
हुए धन्य सिद्धार्थ नगर भूप,
दिया पात्रदान जिनने अनूपा।
महिमा अचिन्त्य है पात्र दान,
सुर करते पंच अचरज महान।
वन को तत्काल ही लोट गए,
पूरे दो साल वे मौन रहे।
आई जब अमावस माघ मास,
हुआ केवलज्ञान का सुप्रकाश।
रचना शुभ समवशरण सुजान,
करते धनदेव-तुरन्त आन।
प्रभु दिव्यध्वनि होती विकीर्ण,
होता कर्मो का बन्ध क्षीण।
'उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी' विशाल,
ऐसे दो भेद बताये काल।
एकसौ अड़तालिस बीत जाये
तब हुण्डा-अवसर्पिणी कहाय।
सुरवमा-सुरवमा है प्रथम काल,
जिसमें सब जीव रहें खुशहाल।
दूजा दिखलाते 'सुखमा' काल,
तीजा 'सुखमा दुरवमा' सुकाल।
चौथा 'दुखमा-सुखमा' सुजान,
'दूखम' है पंचमकाल मान।
'दुखमा-दुखमा' छट्टम महान,
छट्टम-छट्टा एक ही समान।
यह काल परिणति ऐसी ही,
होती भरत-ऐरावत में ही।
रहे क्षेत्र विदेह में विद्यमान,
बस काल चतुर्थ ही वर्तमान।
सुन काल स्वरुप को जान लिया,
भवि जीवों का कल्याण हुआ।
हुआ दूर-दूर प्रभु का विहार,
वहाँ दूर हुआ सब शिथिलाचार।
फिर गए प्रभु गिरिवर सम्मेद,
धारें सुयोग विभु बिना खेद।
हुई पूर्णमासी श्रावण शुक्ला,
प्रभु को शाश्वत निजरूप मिला।
पूजें सुर 'संकुल कूट' आन,
निर्वाणोत्सव करते महान।
प्रभुवर के चरणों का शरणा,
जो भविजन लेते सुखदाय।
उन पर होती प्रभु की करुणा,
'अरुणा' मनवाछिंत फल पाय ।

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