अहं ब्रह्मास्मि महावाक्य | Aham Brahmasmi |
अहं ब्रह्मास्मि महावाक्य
| Aham Brahmasmi |
अहं ब्रह्मास्मि महावाक्य का शाब्दिक अर्थ है मैं ब्रह्म हूँ, यहाँ 'अस्मि' शब्द से ब्रह्म और जीव की एकता का बोध होता है। जब जीव परमात्मा का अनुभव कर लेता है, तब वह उसी का रूप हो जाता है।
❝ अहं ब्रह्मास्मि अर्थात अन्दर ब्रहमाण्ड की सारी शक्तियाँ है। मैं ब्रह्म का अंश हूँ। ❞
मुझमे ब्रह्म की सर्व शक्तियां हैं या ब्रह्म मुझमे है, यह केवल एक अव्यत्क विचार मात्र है? जैसे हम एक सीधे-साधे निर्धन आदमी से कहें: अरे तू तो अरबपति है। यदि उस आदमी ने कुछ देर के लिए उसे सुना, अपने आसपास देखा, हंसा और कहने वालो को जड़ मूर्ख कह चला गया। अब यदि उसी व्यक्ति में पूर्व संचित गुण व संस्कार हैं और उसने धैर्य पूर्वक मनन किया और उस ब्रह्म को प्राप्त किया।
महावाक्य का अर्थ होता है?
अगर इस एक वाक्य को ही अनुसरण करते हुए अपनी जीवन की परम स्थिति का अनुसंधान कर लें, तो आपका यह जीवन सफलता पूर्वक निर्वाह हो जाएगा। इसलिए इसको महावाक्य कहते हैं।
❝ अहं ब्रह्मास्मि अर्थात अन्दर ब्रहमाण्ड की सारी शक्तियाँ है। मैं ब्रह्म का अंश हूँ। ❞
मुझमे ब्रह्म की सर्व शक्तियां हैं या ब्रह्म मुझमे है, यह केवल एक अव्यत्क विचार मात्र है? जैसे हम एक सीधे-साधे निर्धन आदमी से कहें: अरे तू तो अरबपति है। यदि उस आदमी ने कुछ देर के लिए उसे सुना, अपने आसपास देखा, हंसा और कहने वालो को जड़ मूर्ख कह चला गया। अब यदि उसी व्यक्ति में पूर्व संचित गुण व संस्कार हैं और उसने धैर्य पूर्वक मनन किया और उस ब्रह्म को प्राप्त किया।
महावाक्य का अर्थ होता है?
अगर इस एक वाक्य को ही अनुसरण करते हुए अपनी जीवन की परम स्थिति का अनुसंधान कर लें, तो आपका यह जीवन सफलता पूर्वक निर्वाह हो जाएगा। इसलिए इसको महावाक्य कहते हैं।
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