श्याम चौरासी भजन लिरिक्स | SHYAM CHOURASI LYRICS KHATU SHYAM JI BHAJAN LYRICS |

श्याम चौरासी भजन लिरिक्स
| | SHYAM CHOURASI LYRICS KHATU SHYAM JI BHAJAN LYRICS |

।। श्री श्याम चोपाई ।।

।। दोहा ।।
नागसुता सुत श्याम को, सुमिरुं बारम्बार ।
खाटू वाले श्यामजी, सब जग के दातार।
काव्य कला जानूं नहीं, अहूं निपट अज्ञान ।
ज्ञान ध्यान मोहि दीजिए, आकर कृपानिधान ।
गुरु पद पंकज ध्यान धर, सुमिर सच्चीदानंद ।
श्याम चोरासी भजत हूँ, रच चोपाई छन्द ।।

।। चोपाई ।।
महर करो जन के सुखरासी ।
सांवलशाह खाटू के वासी ।।
 प्रथम शीश चरण में नाऊं ।
कृपा दृष्टि रावरी चाहूं ।।
माफ़ सभी अपराध कराऊँ ।
आदि कथा सुछन्द रच गाऊं ।।
भक्त सुजन सुनकर हरसासी ।
सांवलशाह खाटू के वासी ।।
कुरु पांडव में विरोध जब छाया ।
समर महाभारत रचवाया ।।
बली एक बर्बरीक आया ।
तीन सुबाण साथ में लाया ।।
यह लखि हरि को आई हांसी ।
सांवलशाह खाटू के वासी ।।
मधुर वचन तब कृष्ण सुनाए ।
समर भूमि केही कारण आए ।।
तीन बाण धनु कंध सुहाए ।
अजब अनोखा रूप बनाए ।।
बाण अपार वीर सब ल्यासी ।
सांवलशाह खाटू के वासी ।।
बर्बरीक इतने दल माहीं ।
तीन बाण की गिनती नाहीं ।।
योद्धा एक से एक निराले ।
वीर बहादुर अति मतवाले ।।
समर सभी मिल कठिन मचासी ।
सांवलशाह खाटू के वासी ।।
बर्बरीक मम कहना मानो ।
समर भूमि तुम खेल न जानो ।।
भीषम द्रोण कृप आदि जुझारा ।
जिनसे पारथ का मन हारा ।।
तू क्या पे पेस इन्हीं से पासी ।
सांवलशाह खाटू के वासी ।।
बर्बरीक हरि से यों कहता ।
समर देखना मैं हूँ चाहता ।।
कौन बली रणशुर निहारूँ ।
वीर बहादुर कौन जुझारु ।।
तीन लोक त्रिबाण से मारूं ।
हंसता रहूं कभी न हारूं ।
सत्य कहूं हरि झूठ न जानो ।
दोनों दल इक तरफ हों मानो ।।
एक बाण दल दोऊ खपासी ।
सांवलशाह खाटू के वासी ।।
बर्बरीक से हरि फरमावे ।
तेरी बात समझ नहीं आवे ।।
प्राण बचाओ तुम घर जाओ ।
क्यों नादानपना दिखलाओ ।।
तेरी जान मुफ्त में जासी ।
सांवलशाह खाटू के वासी ।।
गर विशवास न तुम्हें मुरारी ।
तो कर लीजे जांच हमारी ।।
यह सुन कृष्ण बहुत हर्षाए ।
बर्बरीक से वचन सुनाए ।।
मैं अब लेहूं परीछा खासी ।
सांवलशाह खाटू के वासी ।।
पात विटप के सभी निहारो ।
बेध एक शर से डारो ।।
कह इतना एक पात मुरारी ।
दबा लिया पद तले करारी ।।
अजब रची माया अविनाशी ।
सांवलशाह खाटू के वासी ।।
बर्बरीक धनु-बाण चढाया ।
जानी जाय न हरि की माया ।।
विटप निहार बली मुस्काया ।
अजित अमर अहिलावति जाया ।।
बली सुमिर शिव बाण चालीसा ।
सांवलशाह खाटू के वासी ।।
बाण बली ने अजब चलाया ।
पत्ते बेध विटप के आया ।।
गिरा कृष्ण के चरणों माहीं ।
बिंधा पात हरि चरण हटाहीं ।।
इससे कौन फतेह किमि पासी ।
सांवलशाह खाटू के वासी ।।
कृष्ण बली कहै बताओ ।
किस दल की तुम जीत कराओ ।।
बली हार का दल बतलाया ।
यह सुन कृष्ण सनाका खाया ।।
विजय किस विध पारथ पासी ।
सांवलशाह खाटू के वासी ।।
छल करना तब कृष्ण विचारा ।
बली से बोले नन्द कुमारा ।।
ना जाने क्या ज्ञान तुम्हारा । 

कहना मानो बली हमारा ।।
हो इक तरफ नाम पा जासी ।
सांवलशाह खाटू के वासी ।।
कहै बर्बरीक कृष्ण हमारा ।
टूट न सकता प्रण ये करारा ।।
मांगे दान उसे मैं देता ।
हारा देख सहारा देता ।।
सत्य कहूं ना झूठ जरा सी ।
सांवलशाह खाटू के वासी ।।
बेशक वीर बहादुर तुम हो ।
जंचते दानी हमें न तुम हो ।।
कहै बर्बरीक हरि बतलाओ ।
तुमको चाहिए क्या बतलाओ ।
जो मांगे सो हमसे पासी ।
सांवलशाह खाटू के वासी ।।
बली अगर तुम सच्चे दानी ।
तो मैं तुमसे कहूँ बखानी ।।
समर भूमि बली देने खातिर ।
शीश चाहिए एक बहादुर ।।
शीश दान दे नाम कमासी ।
सांवलशाह खाटू के वासी ।।
हम तुम अर्जुन तीनों भाई ।
शीश दान दे को बलदाई ।।
जिसको आप योग्य बतलावें ।
वही शीश बलिदान चढ़ावें ।।
आवागमन मिटे चोरासी ।
सांवलशाह खाटू के वासी ।।
अर्जुन नाम समर में पावे ।
तुम बिन सारथी कौन कहावे ।।
शीश दान दीन्हौं भगवाना ।
भारत देखन मन ललचाना ।।
शीश शिखर गिरि पर धरवासी ।
सांवलशाह खाटू के वासी ।।
शीश दान बर्बरीक दिया है ।
हरि ने गिरि पर धरा दिया है ।।
समर अठारह रोज हुआ है ।
कुरु दल सारा नाश हुआ है ।।
विजय पताका पाण्डु फहरासी ।
सांवलशाह खाटू के वासी ।।
भीम नकुल सहदेव और पारथ ।
करते निज तारीफ अकारथ ।।
यों सोच मन में यदुराया ।
इनके दिल अभिमान है छाया ।।
हरि भगतों का दुःख मिटासी ।
सांवलशाह खाटू के वासी ।।
पारथ भीम आदि बलधारी ।
से यों बोले गिरवरधारी ।।
किसने विजय समर में पाई ।
पूछो वीर बर्बरीक से भाई ।।
सत्य बात सिर सभी बतासी ।
सांवलशाह खाटू के वासी ।।
हरि सबको संग ले गिरवर पर ।
सिर बैठा था मगन शिखर पर ।।
जा पहुँचे झटपट नन्दलाला ।
पुनि पूछा सिर से सब हाला ।।
शीश दान है खुद अविनाशी ।
सांवलशाह खाटू के वासी ।।
हरि यों कहै सही फरमाओ ।
समर जीत है कौन बताओ ।।
 बली कहै मैं सत्य बताऊं ।
नहीं पितु चचा बलि न ताऊ ।।
भगवद ने पाई शाबाशी ।
सांवलशाह खाटू के वासी ।।
चक्र सुदर्शन है बलदाई ।
काट रहा था दल जिमि काई ।।
रूप द्रौपदी काली का धर ।
हो विकराल ले कर में खप्पर ।।
भर-भर रुधिर पिए थी प्यासी ।।
सांवलशाह खाटू के वासी ।।
मैंने जो कछु समर निहारा ।
सत्य सुनाया हाल है सारा ।।
सत्य वचन सुनकर यदुराई ।
वर दीन्हा सिर को हर्षाई ।।
श्याम रूप मम धार पुजासी ।
सांवलशाह खाटू के वासी ।।
कलि में तुमको श्याम कन्हाई ।
पूजेंगे सब लोग लुगाई ।।
खीर चूरमा भोग लगावे ।
माखन मिश्री खूब चढ़ावे ।।
मन वच कर्म से जो कोई ध्यासी ।
इचिछत फल सो ही पा जासी ।।
अन्त समय सद्गगति पा जासी ।
सांवलशाह खाटू के वासी ।।
सागर सा धनवान बनाना ।।
पतनी गोद में सुवन खिलाना ।।
सेवक आया शरण तिहारी ।
श्रीपति यदुपति कुंज बिहारी ।।
सब सुख दायक आनन्द रासी ।
सांवलशाह खाटू के वासी ।।
।। चोपाई ।।
श्याम चोरासी है रची, भक्त जनन के हेतु ।
पवन निशि बासर पढ़े, सकल सुमंगल हेतु ।।
लख चोरासी छूटीए , श्याम चोरासी गाय ।
अछत अपार फल पायकर , आवागमन मिटाए ।।

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